Sunday 31 January 2016

धर्म बनाम अधर्म

मै धर्म के विरुद्ध हूँ
मै अधर्म के भी विरुद्ध हूँ
पर मै आंसुओं के करीब हूँ
मै दर्द के करीब हूँ
मै मुस्कान के करीब हूँ ,
धर्म मुझे आंदोलित नहीं करता न ही प्रेरित
अधर्म भी नहीं
पर आंसू दर्द और मुस्कान मुझे कंपा देते हैं ,
कंपा देता है मुझे किसी बच्चे का मासूमियत से तकलीफ सहेजना
फिर भी मुस्कुराना
हंसना - खेलना किसी सीले से बंद कमरे के अंधेरों में जोर से आँखें मीचे
ये मानते
कि वहां भी एक नदी है जो बह रही है कल-कल उसके चारों ओर
तेज़ी से चक्कर काटते
जिसमे वो खुद भी उतनी ही तेज़ी से गुलटियाँ मार रहा है
धार के विपरीत पूरी ताकत लगाता फिर भी हार-हार ही जाता
पर वो खुश है कि ये हार उसने खुद चुनी थी
उसके मन ने चुनी थी
कि ये हार उसे ले जाती है उसकी प्रिय नदी और ढेरों दोस्तों के बीच
बेशक बंद अंधेरे कमरे के सीलेपन के बीच आँख मीचे हुए ही क्यों न हो ,
धर्म मुझे छू नहीं पाता
कि उसका कट्टर व्यवहार व्यक्ति को मानवता से दूर कर देता है
दूर कर देता है उसे दिलों के साझेपन से
और दूर कर देता है आंसुओं के पार झांककर दर्द में कहींगहरे उतर आने केहुनर से
उसे बांटकर ख़त्म कर देने के हुनर से
कि जब कोई शमीम किसी विक्टर से लिपटकर रो सके
कि जब कोई हरमीत कौर किसी आशीष त्रिपाठी को उतनी ही शिद्दत से भाई कह सके
जैसे वो अपने दलजीते को कह पातीहै ,
धर्म मुझमे संवेदनाएं नहीं जगाता
सामान्य शिष्टाचार भी नहीं
कि जब किसी धार्मिक पर्व के बीच
कोई बच्चा प्रसव से तडपती माँ की सहनशीलता को तोड़ता
उसकी गरिमा पर आघात करता सड़क किनारे ही पैदा हो जाता है
या फिर इन्हीं आयोजनों के बीच कोई शख्स अपनी अंतिम यात्रा पर भी
क्यू में नज़र आता है
धर्म के छिछोरे उन्माद के बीच अपनी बारी के इंतज़ार में नज़र आता है
जलाये या दफनाये जाने को आतुर ,
धर्म यदि ये है तो मै इसके विरुद्ध हूँ
तथाकथित धर्मावलम्बियों की परिभाषा के अनुसार मै अधर्म के भी विरुद्ध हूँ
पर उस पवित्र आस्था के निकट
मै सिर ऊँचा किये खडी हूँ
कि मै उसके बन्दों के आंसुओं ,दर्द व् मुस्कान के करीब हूँ
वो सह्रदय है मेरे प्रति
फिर भी यदि आप चाहें तो मुझे काफ़िर कहें बेशक !!

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