Thursday 14 August 2014

बच्ची 2

मेमसाब छुट्टी चाहिए ..गाँव जाना है ...बहादुर ( नौकर ) माँ से बोला ...माँ उसकी तरफ बिना देखे ही कहती हैं ..जाओ साहब से पूछ लो ..वो कहें तो चले जाओ पर हाँ दो दिन में लौट आना ....बहादुर हिचकते हुए बोला ..आप ही कह दें ..हमें डर लगता है ....माँ बोलीं ...अभी जाओ ..अच्छे मूड में हैं साहब कुछ नहीं कहेंगे ...बहादुर चुपचाप सिर झुकाए चला गया ..वो बहादुर को देखती रही ..कभी मा को भी ..लगता जैसे सबके अन्दर पिता का एक खौफ पल रहा है ..उसे कारण समझ नहीं आता ..वो और उलझ जाती तभी एक तेज़ आवाज़ ...चटाक ....चटाक ...अरे ये क्या ..वो भागकर गयी ..देखा तो पिता बहादुर को पीट रहे थे ..वो दोनों हाथों से चेहरा छिपाए खुद को बचाते हुए रो रहा था ...माफ़ कर दीजिये साहब ..नहीं जाउंगा और ये कसकर एक लात पिता ने उसकी पीठ पर मारी ...वो बिलबिलाता हुआ भाग गया ....छुट्टी चाहिए ...जब देखो तब छुट्टी ...चले आते हैं जब तब छुट्टी मांगने ..उसने पिता को गुस्से में कहते सुना.....ये इतना गुस्सा क्यों करते हैं वो मन ही मन सोचने लगी ...बेचारा बहादुर ...उसे कितनी चोट लगी होगी ..कितना दर्द हो रहा होगा उसका मन सहानुभूति से भर उठा ...वो दौडकर देखने गयी सर्वेंट क्वार्टर की तरफ तो देखा माँ पहले ही उधर जा रही थीं साथ में सोमनाथ था शायद ..दूसरा नौकर ...उसके हाथ में दवाई थी दुसरे हाथ में एक गिलास भी ...पानी होगा माँ ने कहा बहादुर दवा खा लो फिर आराम करो ...आज अंदर मत आना ..काम हो जाएगा ...बहादुर डबडबाई आँखों से देखते हुए बोला ..जी मेमसाहब ...माँ वापस आ गयीं ...उसे लगा जैसे माँ का चेहरा उतरा हुआ है ..वो इस बात से उदास थीं कि उनकी वजह से ही बहादुर को मार पडी पर वो किसी से कुछ कहती नहीं थीं ...शायद कह नहीं सकती थीं ..वो क्यों बर्दाश्त करती थीं उसे समझ नहीं आता ....अब ये कौन हंसने लगा जोर-जोर से ....सिर मानो दर्द से अब तो फट ही जाएगा ...सुबह कब होगी ...नींद नहीं आती ढंग से ...जब लगता है सो लूं तभी कोई कान के पास आकर खिल-खिल हंसने या रोने लगता है ...मर्दुआ ...कब ये सब ठीक होगा ....अरे रे ..ये कौन है ...मेरे बगल में आकर कौन सोया ...दिखा तो नहीं कोई ...दरवाज़ा भी बंद है ...ओह्ह दम घुटने लगा जैसे कोई मुंह बंद करके धीरे -धीरे रेत रहा हो गर्दन नहीं सांस .........

नहीं नहीं नहीं ...हम नहीं जायेंगे ...चलो न ...तुम्हें अन्दर घुमा के लाता हूँ ..कभी गयी हो ..नहीं ..कुतुहल और डर दोनों एक साथ ...अन्दर तो भूत है .....कोई भूत-ऊत नहीं है कहकर ___ भैया ठठाकर हंस पड़े ...डरपोक कहीं की ...ऐसा कहो न कि डर लगता है इसलिए नहीं जाना .....मै नहीं डरती किसी से ...तो चलो फिर ..उनकी आँखें चमक उठीं ...चलिए पर अन्दर ही अन्दर माँ का कहा याद आ रहा था कि सामने वाले खाली घर में मत जाना ..वहां भूत है ...उसने मन ही मन मा से माफी मांगी उनकी बात नहीं मानने के लिए फिर ____ भैया का हाथ थाम अकडकर चलने लगी .....गेट तो खुला ही था ...___ भैया ने पीछे वाली आंगन की दीवार के सामने छोटी सीढ़ी रक्खी थी जिस पर चढ़कर अन्दर जाया जा सकता था ....___ भैया ने पहले उसे चढ़ाया और धीरे से आंगन में उतार दिया फिर खुद कूद पड़े ...धप्प ...वो चौंक गयी भैया जोर से हंस दिए ...मैंने कहा था न डरपोक कहीं की ...मै नहीं डरती उसने गुस्से से कहा पर कसकर उनका हाथ भी पकड़ लिया ...__ भैया बोले चलो अन्दर चलते हैं ..उसने सहमी हुयी आवाज़ में कहा ..नहीं अब घर जायेंगे ..अंदर अँधेरा है ...भैया ने कहा ....धत्त , अभी कहाँ अँधेरा है अभी तो सूरज भी नहीं डूबा फिर मै तो हूँ न ....वो हिम्मत करके उनके साथ अन्दर गयी ....__ भैया एक एक कमरा दिखाते रहे ...अचानक उसे लगा कि भैया का हाथ उसकी पीठ और कमर पर है ....अनकस लगा तो उसने हटा दिया ..भैया ने फिर उसे गोद में उठा लिया ....उसने कहा छोडिये मै खुद चलूंगी ...भैया हंसने लगे बोले नीचे गन्दा है और सामान भी बिखरा पडा है तुम्हारी फ्रॉक फट गयी तो तुम्हारी माँ तुम्हें डांटेंगी....उसने भी सोचा कि फिर ठीक है लेकिन भैया घबराये जैसे क्यों दिख रहे ...पसीने-पसीने हो रहे ...उसने पूछा ...अब आपको डर लग रहा है क्या ..वो जल्दी से बोले नहीं तो ..क्यों ...तो फिर इतना पसीना क्यों आ रहा आपको ...अरे वो तो बस ऐसे ही ...तुम्हें उठाया था न ..तुम इतनी मोटी जो हो कहकर हंस दिए ....वो गुस्सा हो गयी ....जाइए कट्टी... मै आपसे बात नहीं करूंगी ...आप गंदे हैं ....अरे तुम तो नाराज़ हो गयी ...अच्छा चलो ...कुछ खेलते हैं ...यहाँ....इस गंदगी में ......मै तो नहीं खेलूंगी वो बिचक गयी .....अरे रुको भी ...मै ये सब साफ़ कर देता हूँ फिर ......खेलना है तो बाहर चलिए वहां खेलेंगे ..मज़ा आएगा .....यहाँ अच्छा नहीं लग रहा ...मुंह बनाते हुए उसने कहा ....उन्होंने कहा ..बस एक बार मेरे लिए ...खेल लो न ....वो माँ गयी ....____ भैया ने थोड़ी सी जगह साफ़ की और कहा कि एक काम करो तुम आँख बंद करके यहाँ लेट जाओ....अरे लेटो तो .....ये एक नया खेल है ...अच्छा कहकर वो लेट गयी ...आँखें बंद रखना ..चीटिंग नहीं ....उसने खूब कसकर आँखें बंद कर लीं ...__ भैया उसके पेट पर गुदगुदी करने लगे ...वो खिल-खिल कर हंस दी ...वो और गुदगुदी करने लगे ..वो और हंसने लगी ...जोर-जोर से कि तभी ये क्या ....वो कुछ कहने को ही थी कि भैया ने कसकर उसके पैर पर हाथ रख दिया अब उसने अपनी आँखें खोलीं ...वो डर गयी ..कैसी तो लाल लाल आँखें थीं भैया की ..उसने हाथ से उन्हें हटाना चाहा तो उन्होंने कसकर घुड़क दिया ...वो बहुत डर गयी ....आज ये भैया को क्या हो गया है ...मुझे डांट क्यों रहे हैं ...माँ ...माँ ...वो चिल्लाना चाह रही थी पर आवाज़ नहीं निकली ....भैया ने पूरी ताकत से उसके मुंह को बंद कर दिया था ...गों ...गों ...गों .....उसकी आँख से आंसू निकलने लगे ....वो दर्द से कराह उठी ....भैया अपनी पूरी ताकत लगा रहे थे पर उसने भी हार नहीं मानी ...विरोध करती रही ...अंत में ___ भैया ने एक थप्पड़ कसकर उसके गाल पर मारा और धमकाते हुए कहा कि इसके बारे में अगर किसी से कुछ कहोगी तो बहुत बुरा होगा ...बहुत पिटाई करूंगा ....वो थर-थर कांप रही थी ...बेहद डरी सहमी हुयी थी ...उसने खड़े होने कि कोशिश की पर नहीं हो पायी ...दुबारा कोशिश की तो गिर पडी ..फिर भैया ने उसे एक झटके से पकडकर दीवार के सहारे खड़ा किया ..अपने हाथों से उसका चेहरा ठीक-ठाक किया और घुड़ककर बोले चलो ...याद है न मैंने क्या कहा है ...उसने रोते हुए सिर हिला दिया ....रोना बंद करो अब ...पर उससे तो चला ही नहीं जा रहा था ....बहुत दर्द हो रहा था ....मै नहीं चल पाउंगी उसने रोते हुए कहा ...क्यों ..क्यों नहीं चल पाओगी भैया गुस्से से बोले ....बहुत दर्द हो रहा है उसने भाररती सी आवाज़ में कहा ....अच्छा और भैया ने उसे गोद में उठा लिया फिर वैसे ही अन्दर की तरफ रखी सीढ़ी से उसे पार करवाया और वहीँ खड़ा करके गुस्से से बोले ...अब यहाँ से अपने घर चली जाओ ....और मेरी बात याद रखना उन्होंने फिर चेताया .....अब तक सूरज डूब चूका था ...हल्का अँधेरा उतर आया था ....वो डरी सहमी धीरे धीरे कांपते हुए अपने घर की तरफ चलने लगी ...बीच में दो बार गिरी ..चला नहीं जा रहा था ...पता नहीं भैया ने क्या किया था कि इतना दर्द हो रहा था .....क्यों किया ....माँ पूछेंगी तो क्या जवाब दूंगी और अगर पिता ने पूछ लिया फिर ...कहीं कोई नौकर न देख ले नहीं तो सबको पता चल जाएगा ...वो धीरे-धीरे यही सब सोचते हुए घर की तरफ बढ़ती रही ....सबसे बचते-बचाते अपने कमरे में पहुँच ही गयी .....घन-घन थप-थप घन -घन थप-थप ...हे भगवान् ये कौन है जो एक साथ दरवाज़ा भी पीट रहा है और हथौड़ा भी चला रहा .....अरे बस करो ...तोड़ ही दोगे क्या दरवाज़ा...खोलती हूँ न ...और तुम हथौड़ा पीटना बंद करो नहीं तो सिर के दो टुकड़े हो जायेंगे पर घन-घन थप-थप घन-घन थप-थप --------------------

बच्ची

मै कभी बच्ची नहीं रही ..

अभी भी हो ..और रहोगी

अचानक ही हिलोर उठी उसमे फिर शांत भी हो गयी खुद ही .ऐसा नहीं था कि उसका बचपन कभी था ही नहीं पर हाँ बचपन जैसा नहीं था ...तब भी थी वो एक गंभीर उदास एकाकी जीव भर ही ....
चलो रहने दो ये कैसे मुमकिन है कि बचपन हो पर फिर भी न हो ..वो धीरे से मुस्कुरा दी और चली गयी बिना कुछ कहे .
रात भर कोई खिल -खिल कर हँसता और फिर रोने लगता कानो के ठीक पास ....बार बार उठती देखती झटकती चादर और पाती खुद को पसीने से तरबतर ....उठकर पंखा तेज़ करती ...उफ़ ये गर्मी ....बारिश भी तो नहीं हो रही कमबख्त कि पीछा छूटे वो बुदबुदाती फिर चारपाई की तरफ बढ़ जाती ...अचानक महसूस होता कमरे में कोई और भी है उसके अतिरिक्त ...आँख गडा-गडा देखती पर कोई नहीं दिखता ..कोई तो नहीं है ...पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि हर वक्त कोई पीछा करता रहता है ..सोते जागते उठते बैठते खाते पीते हंसी ठिठोली करते ...कौन है ये जो घूरता रहता है ....मन होता कभी कि खूब तेज़ दौड़ लगाऊं अँधेरे में वहां तक जहां से कुछ चमकीला सा दिखता है तो कभी लगता कि समय का चक्र पकड़ के उल्टा घुमाऊं पूरे जोर से ...फिर से वापस वहा तक पहुंचूं जहां एक बड़ा सा खिल्ला ठोका हुआ है मन के भीतर ..जहां जब कुछ कहूँ और कोई न सुने तो जोर से चिल्लाऊँ..इतना तेज़ कि फिर कोई और भी न बोल सके ...जहां सबकी तरह मेरे पास भी हों नए खिलौने या फिर कुछ भी ऐसा जो दोस्तों को दिखाकर रूतबा जताया जा सके ...उस ख़ुशी और संतोष कि तो तुलना ही नहीं की जा सकती पर जहां मै हमेशा दूसरी तरफ थी ...अब फिर से सिरदर्द बढ़ने लगा ...सोना ही होगा वरना खोपड़ी फट जायेगी ..आँख मूँद कर करवट लेती हूँ ....चारपाई फिर मिमियाती है ..फिर ऐसा लगा जैसे कोई फिक्क से हंस पडा रोने जैसा ......सपने भर सारी रात वो गुडिया ही सजाती रही माने बताती रही मा को कि चूड़ी गुलाबी चाहिए लाल नहीं ...लाल अब कोई नहीं पहनता ...मांग टीके में कोई हरा रंग भी भरता है क्या .... साडी भी चटक गुलाबी ...माँ सब करती ...यही इकलौता सुख उसके बचपन का .....उफ़ पंखा इतनी आवाज़ क्यों करता है ..दिखाना ही पडेगा ....तभी ड्राईवर आया अन्दर पिता का सामन लेकर ...वो समझ गयी पिता आ गए हैं ...अब यहाँ रहना बेकार ...वो चिल्लायेंगे कुछ कहेंगे मा को और फिर मा जवाब देगी और दोनों में लड़ाई शुरू ...कितना लड़ते हैं ये लोग ..क्यों लड़ते हैं वो नहीं समझ पाती पर वहां से खिसक लेती ..पिता से डर लगता उसे ...पहले नहीं लगता था पर उस दिन जो उसने मजाक में पौधा उखाड़ दिया तो पिता कितने गुस्से हो गए ..बरामदे में पटककर पैर से चेहरा दबा दिया ....बहुत जोर से दर्द हुआ ..सैंडल जो पहनी थी उन्होंने ..उतार देते ..कम से कम कान तो न कटता और न ही इतना खून निकलता ...उस दिन भाइ बहुत जोर से चिल्लाये पिता पर ..बड़ा अच्छा लगा ...जब पिता ने भी तुरंत अपना पैर हटा लिया और चुपचाप बाहर चले गए .....उसे लगा कि शायद पिता भाइ से दबते हैं ...उनके सामने वो कुछ नहीं कहते ..कहते तो हैं ही पर ज्यादातर नहीं ....उसने सोचा कि अगर अब पिता ने कभी उसे मारा तो वो भाइ से शिकायत करेगी पर कुछ ही दिनों में वो भ्रम भी टूट गया जब पिता ने उसे बिजली वाली लम्बी तार को मोड़ मोड़कर छोटा बनाकर उसे पीटा था ....एकदम छनछना गयी थी वो ..चमड़ी उधड आई थी ...केवल इस बात पर कि पिता ने मा के सिर पर लोहे की सरिया से मारा था और उसने मा को कसकर रोते हुए पकड लिया और पूछा था कि आपने क्यों मारा ......उस समय भाई नहीं थे पर बाद में जब आये तो उसने भाइ को भी मजबूर ..कसमसाकर रोते हुए देखा था ...उसे लगा भाई भी शायद पिता का कुछ नहीं कर सकते ..वो सबसे दूर--दूर रहने लगी ....न न ऐसा नहीं कि वो खेलती कूदती नहीं या उसके दोस्त वगैरह नहीं थे ...सब था पर कहीं न कहीं वो उन सब से छुपती-छुपाती रहती कि कहीं कोई कुछ पूछ न ले और उस पर भी अगर कोई पूछता कि कल तुम्हारे घर से रोने की आवाज़ आ रही थी या फिर तुम्हें चोट कैसे लगी या फिर तुम्हारी मा के चेहरे पर ये निशाँ कैसा ...वो एकदम भौंचक सी हो जाती मानो काटो तो खून नहीं कि इसे कैसे पता या फिर क्या जवाब दूं ..वो धीरे-धीरे सबसे कटने लगी हालांकि मा ने कुछ बहाने तैयार करवाए थे जैसे पढाई नहीं की तो भाई ने मारा या फिर मा फिसल कर गिर गयीं या फिर ..या फिर ...या फिर .........उफ़ फिर से ये कौन हंसने लगा खिल-खिल कर कान के पास बिलकुल रोने जैसा ....अब बर्दाश्त नहीं होता और हलके हलके नींद के झकोरे उस पर छाने लगे .