Monday 24 March 2014

समय

समय को काटकर रख लो तिजोरी में
कि ये काम आयेंगे तब
बदन से सांस जब निकलेगी अंतिम
ज़रा मोहलत मिलेगी देखने की
कि आया कौन है
दरअसल कौन -कौन है
मेरी अंतिम घड़ी में
जो मुझसे प्रेम करता है
कि या फिर वो जो करना चाहता है तस्दीक
मेरे साँसों के रुकने की !!

सुकून

जिस्म होने से इनकार है मेरा
मेरी मान्यताएं मेल नहीं खातीं इससे ,

मै रूहों की दुनिया में खो जाना पसंद करूंगी 
कि उनकी शरारतें लुभाती हैं मुझे
उनका भोलापन आकर्षक है
समर्पण अद्वितीय ,

रूहानियत स्वयं में अप्रतिम सुकून है
यहाँ जुड़ने को समझौतों की दरकार नहीं होती !!

Friday 21 March 2014

घटना

तुम्हारी मौत एक घटना मात्र है ,

कुछ संवेदनाओं
कुछ अफ़सोस
कुछ ऐलान
कुछ प्रश्नों
कुछ आक्षेपों
कुछ सफाइयों के लिए
जो समाज और सरकार में जन्मेंगी
सीमित समय तक ,

परन्तु कुछ से बहुत ज्यादा
उस पीड़ा व असुरक्षा के जन्म की भी
जो तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे परिवार की निजी होगी ,

उन्हें सैनिक बनना होगा
जूझने के लिए
जीवन की तल्खियां तमाम उम्र तक
लम्हा दर लम्हा ,

तुम्हें ढेर सी उदासियों और गर्व के साथ सलाम
तुम्हारे परिवार को हौसले की झूठी सीख का सन्देश भी ,

भीतर की लडाइयां बाहर से ज्यादा खतरनाक होती हैं
भीतर के दुश्मन भी
नीति और राजनीति भी !!

चिड़िया

चिड़िया होना चाहती हूँ ,

फुदकना
चहकना
स्वतंत्र उड़ना चाहती हूँ ,

बंदिशें नहीं
रवायतें नहीं
ख्वाहिशों को जीना चाहती हूँ ,

सारा आसमां पंखों में समेट
गर्व को महसूसना चाहती हूँ ,

सारी सृष्टि आशियाना हो
ये अहसास करना चाहती हूँ ,

स्त्री होने पर ये मुमकिन नहीं
इसलिए ही
चिड़िया होना चाहती हूँ !!

tishngee

अंधेरों में तिश्नगी फूट-फूट पड़ती है
किसी साजिश की तरह
अँधेरा कम नहीं होता कभी
रचता रहता है षड्यंत्र हर बार नए से ,

वो हर बार सफल
मै असफल हो जाती हूँ
वो बढ़ता रहता है
मै घटती रहती हूँ
अंजुरी से फिसलकर
समन्दर हो जाने के लिए ,

कि किसी की हार यहाँ समन्दर सी भी हो सकती है
गंभीर --गहरी --वेगवान-----
अनियंत्रित और खारी
जिस पर कभी फूल नहीं उगते !!

aurten

औरतें झूठ बोलती हैं ,

दरअसल हमारी पीढी की औरतें झूठ बोलती हैं
जब वे कहती हैं कि वे खुश हैं ,

छिपाना चाहती हैं वे
खुद के कमतर आंके जाने को
हर रोज़ आहत किये जाते मन को
अनायास ही भर आयी उन आँखों को
जिन्हें वे चुपके से नज़र बचाकर पोछ लिया करती हैं
किसी के देखने से पहले ,
बिना कहे ही समझ जाती हैं वे समाज की कुत्सित रवायतों को
परिवार की चेष्टाओं में छिपे अनगिनत निषेधों को ,

औरतें क्यों झूठ बोलती हैं
पीड़ा सहती हैं
क्यों अपमान के बावजूद भी मुस्कुराती हैं
क्यों खुद को पुरुषों से हीन मानकर संतुष्ट रहती हैं
जबकि पुरुषों के अस्तित्व का सच भी इनके उन्ही अंगों से जन्मता है
जहां पुरुष सबसे ज्यादा प्रहार करता है !!

Wednesday 19 March 2014

mai hoon

फ़िक्र मत करो
मै हूँ हमेशा ही
तुम्हारे लिए
तुम्हारे साथ ,

फ़िक्र मत करो
मै तुम्हारे देर रात तक घूमने पर प्रश्न नहीं करूंगी
मै जानती हूँ कि देर रात तक घूमना सुकून से भर देता है
कि देर रात दोस्तों का साथ जिन्दगी को नयी दृष्टि नए अर्थ देता है
कि देर रात उम्मीदों के साथ ही विश्वासों को भी पुख्ता करता है ,

फ़िक्र मत करो
कि मुझे नहीं है कोई ऐतराज़ तुम्हारे छोटे कपड़ों पर
कोई कुछ भी कहे पर मै जानती हूँ
यही छोटे कपडे शालीनता को बोझ होने से बचा लेते हैं
यही छोटे कपडे चिड़िया होने का सा अहसास कराते हैं
यही छोटे कपडे आत्मविश्वास से लबालब भर देते हैं ,

फ़िक्र मत करो
मुझे ख़ुशी है कि तुम अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए कटिबद्ध हो
सिर्फ जी पाने भर के लिए नहीं
मुझे खुशी है कि तुम्हारे सपने जीवित हैं और स्वछंद भी
मुझे यकीन है तुम्हारे हौसलों पर कि तुम उनमे खूबसूरत रंग भर लोगी ,

फ़िक्र मत करो
कि तुम्हारी कोई भी गलती कभी भी इतनी विकट नहीं  हो सकती
कि हम मिलकर उसे सुधार न लें
तुम्हारा कोई भी कदम इतना विपरीत नहीं हो सकता
कि हम उसे मिलकर सही दिशा न दे सकें
तुम्हारा कोई भी फैसला इतना व्यर्थ नहीं हो सकता
कि हम उसे मिलकर एक नया आयाम न दे सकें ,

फ़िक्र मत करो मेरी बच्ची
कि मै हूँ
तुम्हारे जीवन के हर पड़ाव में घटित होने वाली 
तमाम किस्म की घटनाओं में
तुम्हारी प्रथम सहयोगी हमराज़ व् तुम्हारी अभिन्न मित्र
इस आश्वस्ति के साथ
कि इन सबमे हमारे साथ हैं शामिल तुम्हारे पिता भी !!

Monday 3 March 2014

असमंजस

धरती असमंजस में है
तपन की जगह ये नमी कैसी
अभी तो अन्तस पूरा सूखा भी नहीं था
और बादल फिर से बरस उठे
कि ज़रा तो थामा होता खुद को
नियंत्रित किया होता
पूरी सूख जाने पर मै स्वयं करती तुम्हारा आह्वान
बाहें फैलाए
और भर लेती साँसों को तुम्हारे सोंधेपन से
अंतर्मन सराबोर हो जाता
पर तुम ठहर नहीं पाए
मै जी नहीं पायी सम्पूर्ण प्यास !!

बदलाव

कुछ ख़ास लम्हों को मैंने कभी नहीं जिया
पिता के साथ को कभी नहीं जिया
कभी नहीं जी मैंने उनकी हंसी उनका उत्साहवर्धन
जैसा सब जिया करते हैं
बेटियों के लिए जैसे पिता हुआ करते हैं
मैंने जी है उनकी उदासीनता उनकी उपेक्षा
उनका होना कि वो मुझे नकार नहीं सकते
सिर्फ इसलिए ही वो मुझे स्वीकार भी नहीं करते ,

पर कुछ ख़ास लम्हों को मैंने जिया है
बड़ी शिद्दत से
जैसे कलियों का उदास होना
या मौसमो का रो पडना
पक्षियों की खामोशी या बसन्त का एकाकी होना
डूबती लालिमा का दर्द और फिर चाँद का बोझिल होना
खाली-सूनी आँखों से ---- बेआवाज़
एक लम्बे समय तक,

आज फिर महसूसती हूँ वही सब
और रो पड़ती हूँ
कि ख़ास लम्हे हुबहू वही हैं
पर आँखें बदल गयी हैं
आज ये पीड़ायें
मेरी जगह मेरे पिता की हो गयी हैं !!