Tuesday 28 August 2012

रूहानियत

रूहानियत की दुनिया में सरहदें नहीं होतीं
रवायतें भी नहीं
यकीन का इक पाकीज़ा सिलसिला भर है ये ,

सांस दर सांस गहराता जाता है
फलक पे ठहरे आफताब की तरह ,

सदियों का फासला भी यहाँ दूरियां पैदा नहीं करता
बस कुछ अहसास बेहद खास हो जाते हैं
धडकनों की मौजूदगी का आइना बनकर ,

हवाओं में अक्स भी जिन्दा नज़र आते हैं
लफ़्ज़ों में जो  उम्र भर की दुआयें बन जाते हैं
बिना किसी कायदे और बिना किसी दायरे के ,

यहाँ इश्क भी बस इश्क होता है
अपनी पूरी शाइस्तगी
अपने पूरे ज़ज्बात के साथ  !!



          अर्चना राज 

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