Wednesday 9 May 2012

क्षणिकाएं

रो रो के कर चुके हैं फ़रियाद तुमसे इश्क की

हंस हंस के जिसको तुमने यूँ आइना दिखा दिया !!



इक रहगुजर है सामने जाती नज़र जहां तलक

इक तुम हो इतने पास कि आते नहीं नज़र कभी !!



गुजरती नहीं है रात सवालों की शक्ल में

जवाबों का इंतज़ार सलीबों सा हो गया !!



 बाबस्ता हूँ कुछ इस कदर तेरे ख्यालों में हमनफज मेरे

मेरे दहलीज़ पर तेरा आना भी नज़र नहीं आता मुझको !!



सब्र टूटा नहीं है मेरा की उम्मीद अभी बाकी है

हर सांस जीती हूँ तुम्हें पर रीत अभी बाकी है  !!



मेरे ज़ख्मो को आंसुओं की बारिश में बदल जाने दो

थाम लो मुझे अपनी बाहों में और बिखर जाने दो !!



अहसासों की कशमकश में कुछ शब्द बिखर जाते हैं

जिन्दगी बेमकसद ही तो दर्द की तस्वीर नहीं होती !!



सड़कों की रौशनी में भी बना करती है तकदीर यूँ तो

मुकद्दर संवारने को कभी बहाने की जरूरत नहीं होती !!



धडका करती है तेरी आहट भी मेरे खामोश दरीचे में

तेरे कदमो के निशान मुझे वहां अब भी नज़र आते हैं !!



चमन में फूल भी उगते हैं संग काँटों के साए में

बिखर जाती है ये मुस्कान भी अश्कों तले छिपकर !!



मुस्कुराने की जद्दोजहद में अश्क फिसल जाते हैं

यादों को जीने का सलीका सबको नहीं आता !!



मिटटी से इक अंकुर फूटा बीज बना हरियाली 
गहन वेदना से ही उपजे खुशियों की किलकारी 
बिखरी है कण कण में यही चेतना बनकर माया 
सृष्टी की रचना से ही गतिशील है दुनिया सारी !!






























No comments:

Post a Comment