Monday 14 May 2012

क्षणिकाएं ..मई ---१२

आसमान की सियाही तेरी धडकनों में उतार दूं
जो तू बरसे बेहिसाब तो मै खुद में संभाल लूं !!

चटके आईने में तेरी सूरत पूरी नज़र नहीं आती
छलक उठते हैं जब अश्क तो दूरी नज़र नहीं आती !!

नमी की आस में भटका किया मै यूँ ही दर-ब-दर
जो बरसो तो बेहिसाब की भीगूँ मै बेहिसाब !!

थाम लूंगी समन्दर को भी अब दामन में अपने
कि मै भी लहरों पर चलने का हौसला रखती हूँ !!

अब्र को मै कैद कर लूं अश्क के आगोश में
दिल मेरा रोयेगा फिर भी दरिया हो जाने तलक !!

दोस्ती कि शक्ल में अपने भी खंज़र उठाये फिरते हैं
इस तिलस्मी दुनिया में अब दुश्मन करीब लगते हैं !!

सामने आकर ज़रा इक बार ये कह दो कभी
दोस्ती कि शक्ल में तुम दुश्मनी के साथ हो !!

रात का आइना मुझे मेरी बेबसी दिखाता रहा
मै रात भर रोती रही वो रात भर हंसता रहा !!

शाखों कि बारादरी में यूँ बैठे हुए मुद्दत हुई
उगने लगा इक शाख मुझमे भी तेरी उम्मीद का !!

मुफलिसी वो खंजर है जो सामने आकर ही वार करता है
हलाल होती हैं इसमें जिंदगियां मय अरमान बहुत आहिस्ता से !!

तेरी जुस्तजू तेरी चाह में ये तमाम उम्र यूँ गुजर गयी
इक चाँद था वो भी गया इक नज़्म जैसे पिघल गयी !!

उदासी चाँद कि अब अब्र कि बूंदों सरीखी है
बरस जाए जो ये अब चांदनी पर तो करार आये !!


































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