Saturday 12 May 2012

क्षणिकाएं ----जनवरी १२

चलो अब गर्म सलाखों से लिखें तकदीर चट्टान के पन्नो पर
कि अश्कों में डूबी कलम तो इरादों को कमजोर बना देती है !!

कुदरतन शौक है दिल को लगाना आपका
न यूँ खेला करो इनसे ये नाज़ुक चीज़ होती है !!

उलीचकर तमाम दर्द इस कदर गंगा में मिला दिया मैंने
कि तेरे इश्क की बेवफाई को रुसवा नहीं किया मैंने !!

दर्द का आबशार कुछ इस तरह नुमुदार हुआ ज़माने में
परदे की कोशिश में दुपट्टा भी बेहिसाब ज़ख़्मी नज़र आया !!

तू कहता है की तू अब वो नहीं है जो तू पहले था
मै कैसे मान लूं की इश्क भी चेहरे बदलता है !!

चलो जी लें ज़रा कुछ देर साँसें अब भी बाकी हैं
की मरने की भी हसरत अब तो यूँ  मरने नहीं देती !!

अपने ज़ख्मो को मेरी पलकों से छू लेने दो मुझे
अपने अश्कों को मेरे अश्कों में यूँ ही घुल जाने दो !!

मुझे समेट लेने दो अपने दामन में तुम्हारे दर्द सारे
और अपनी रूह के संग तमाम उम्र यूँ ही बिखर जाने दो  !!

बुझने लगता है रिश्तों में अलाव कुछ वक्त के बाद

जमने लगती हैं फिर वहां बर्फ की सतहें आहिस्ता से !!

रूह से गुजरकर जो इक आह बिखर गयी है इस तमाम कायनात में
इश्क की खुशबू महसूस होने लगी है अब उसमे बेइन्तहां दर्द की जगह !!

सीपियों में मोती सा पलता है उसका इश्क सदियों तलक 
समंदर की ये बेइन्तहां बेचैनी यूँ बेवजह नहीं हुआ करती !!
  
क्यूँ तैरता है मेरा ज़िक्र उन हवाओं में जहां बारूद की खुशबू आती है
सरहद के पार गुमनाम अंधेरों में भी
क्या सिसकियाँ सुनाई देती हैं!!

जिन्दगी के आईने में ये किसकी शक्ल 
इतनी बूढी इतनी ज़र्द नज़र आती है 
ये तुम हो या मै हूँ या फिर हमारा नसीब
 जो इश्क के ईमान की पैदाइश है !!

मुट्ठी में जिन्दगी के है कैद लम्हे इतने 
गुजरते हैं दरमियान जो साँसों से रेत जैसे 
अहसास नहीं होता खोने का इनको अक्सर 
बस  आँख है भर आती आइना फकत देखकर !!























No comments:

Post a Comment