Thursday 10 May 2012

क्षणिकाएं ----------- अप्रैल १२

फौलादी इरादा है ज़माने को दिखा दो तुम

सच्चाई कभी भी झुक के यूँ टूटा नहीं करती !!



चाँद का भटकना यूँ तमाम रात और तेरा गुम हो जाना

तुझे अहसास भी है की कितनी आहों का तसव्वुर है तू !!



तन्हाई का आलम और ये तेरी यादों का दर्द बेशुमार

तप्त आँखों में पलते आंसू भी अब मौन हुए जाते हैं !!



गुजर जाए तो यूँ कहना की ये तो वक्त था चला गया

सिमटकर तो पहलू में अब यादें भी नहीं रहतीं !!



गुजरते लम्हों को यादों की बैसाखी मत बनाओ

जी लेने दो इसे यूँ खुद का तसव्वुर बनकर  !!



इश्क यूँ होने और न होने के बीच की कशमकश भी है

गुजरती है उम्र अक्सर इसी समझ की आज़माइश में !!



जिन्दगी दर्द के कतरों में बंटा अफसाना है

अब यूँ करें की इसे वक्त के पन्नो में समेटे  !!



सफ़र ख़त्म हो चला है मगर मंजिल नज़र नहीं आती

अब तो रास्तों के कंकड़  भी हमराह से लगने लगे हैं !!



संभलकर चलना की रास्ता मुश्किल है बहुत

ये इश्क है दिल बहलाने का सामन नहीं !!



क़त्ल कर दो या क़त्ल का सामन मुहैया कर दो

अब यूँ रोज थोडा-थोडा नहीं मरा जाता मुझसे !!



पलटकर थम सी जाती हूँ तेरी आहों के साए में

तेरी हर सांस मुझमे इस कदर हलचल मचाती है !!



इक नज़्म लिखी है साँसों ने , इक नज़्म कही है आहों ने

इक नज़्म अश्कों में बदल गयी और दरिया को सैलाब किया !!



चाँद के जिस्म से यूँ आह का तूफ़ान बरपा

सिसक उठी कायनात भी दरिया बनकर !!



तकलीफ दिल की बड़ी आन से छुपाया तुमने
कहा कुछ नहीं बस मुस्कान दिखाया तुमने
दर्द यूँ बेचैन दरिया सा उफान रहा था तुममे
पर ये इश्क भी बड़ी शान से निभाया तुमने !!





 



























































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