Tuesday 14 February 2012

अहसासों का बसेरा


लोग कहते हैं कि मेरा घर
अहसासों का बसेरा है ;
वो दरवाजा भी नहीं खटखटा सकते
 क्योंकि मेरे घर के चारों तरफ
मुहब्बतों की क्यारियाँ हैं ;
जिस पर आप ही उग आये हैं
रंग-बिरंगी तितलियों से फूल ;
और न जाने कैसे
यहाँ घुलने लगती है
साँसों में मेहदी की खुशबू भी  ,

बेशक तुम यहाँ मौजूद नहीं हो
पर फिर भी
तुम्हारी नज़रों का कडा पहरा
आगाह कर देता है मुझे
सख्त ज़मीन पर
कदम रखने से पहले ही ;
तुम्हारे आवाज़ की आतिशी विनम्रता
अब भी
मेरे हर शर्म की
चादर बन जाती है
और मै ठहर जाती हूँ
अपनी किसी भी
बेजा चाहत के उभरने  से पहले ही ;
मेरे आँखों में उतरी गहरी उदासी भी
तुम्हारी उँगलियों के स्पर्श से ही
हमेशा तबस्सुम बन जाया करती है ,

आज भी मेरे घर के बगल की
पहाडी से गिरता वो झरना
तुम्हारे आँखों में उतरी
नमी का सा आभाष देता  हैं ;
उसमे भीगते हुए
भीग जाया करता है मेरा अंतर्मन भी ;
मेरे अहसासों से मेरी रूह तक
कम्पन की इक लहर उठती है
जिसे तुम थाम लिया करते हो
अपने आगोश में हर बार
न जाने कैसे ,

इस अह्सांसों के बसेरे में
जीती हूँ तुम्हे ही हर सांस ;
तुम्ही को ओढती - बिछाती हूँ
तुम्हीं से बातें करते
लड़ते-झगड़ते
दिन कब बीत जाता है
पता ही नहीं चलता मुझे ;
तुम्हीं से रूठती और मान जाती हूँ ,

दरअसल अहसासों की मिटटी से बने इस घर को
तुम्हारे ही प्रेम से रंग दिया है मैंने ;
हमारी चाहतों की जमीन पर ख्वाहिशों के फूल उगा रक्खे हैं मैंने ;
जिनसे हमारे रूहानी इश्क की खुशबू
हवाओं में तैरती रहती है हर वक्त ;
और ये जादू तो केवल
इश्क के बेइन्तहां.. बेचैन
ख्वाहिशों  का ही असर हो सकता है न ;
और यही हो सकता है बस
हमारे इश्क और
हमारे अहसासों का बसेरा
मेरे हमनफज !!

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