Friday 30 December 2011

दर्द


सुलगते दर्द का सुर्ख अँधेरा
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;

कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!


शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी


                  अर्चना राज !!

No comments:

Post a Comment