Wednesday 12 October 2011

इक नज़्म

इक नज़्म मुहब्बत की , जो लिखी गयी थी ,
हम दोनों के बीच ;कभी ... अहसासों से ......

आज उसकी इबारतों के ;हर्फ़ भी ..हरसूं
बिखरे बिखरे से नज़र आते हैं .......

आंसुओं की पुरजोर कोशिश है
उन्हें समेटने की ,अपने पाक दामन में,

न जाने क्यों ,फिर भी उगने लगा है ..आहिस्ता से
दर्द का इक दरख़्त ......सीने में ......!!!!!


                        रीना !!!!!!!!








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